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sagai ke vkt

मैं तुम्हारे अक्ष पर उँगलीयाँ घुमाता किस तरह तुम बताओ ख्वाब में आता तो आता किस तरह हर तरफ थी चाँदनी पर तम सा आलम हो गया तुम बताओ चित्र पर नजरे गिराता किस तरह रात के आगौश में फिर ख्वाबों औढे़ सो गया मखमली सी ख्वाईशे भी मैं बिछाता किस तरह मां के आंचल से बंधी थी प्यार की जो डोरियाँ लांगकर मैं बेड़ीयां आता तो आता किस तरह पुष्प के गुंजार का आलम यह मधुकर जानता दिलकशी का राज़ भी तो राज बताता किस तरह शायर भरत राज 9983917025
 देखियो थारी अाँखियां में हाचि प्रीत रो रंग ज्यूँ  मिट्ठू  लटका  करे  प्यारी मैना रे संग गौरी क्यूँ नखरा करें आंखियाँ  काजल  काढ़ साजन  आयो   हावरे   जा  बारे  मुंडो   काढ बाद्लिया   गरजा   करें   हावन  बरसे आज पिया   घराने    आवोरा    हिवड़ो  केवे  राज़ 
रास्ते   में  पाँव   देखे ,साथ   यह  किसका  मिला डूबती  सी  जिंदगी  को  यार  फिर  तिनका मिला तोय   सफीना  मुस्कुरा  मन  ही  मन बतिया रहे चलते  चलते  नाविक  को एक नया झटका मिला   प्रीत मिलन संयोग कृपा सबको मैंने पास बुलाया नफरतो   के   शहर   में  तरुण    भटका     मिला कर   से   मेरे   अब   तलक  पौंछना  ही  रह गया आँख का आंसू भी  मुझको इस कदर टपका मिला प्रीत की  एक  जंग  खेली , ना  हार  हुई  ना जीत हार जीत के  चक्कर में और "राज़ " लटका मिला शायर भरत राज़
तेरी सदा दुआ सही मेरी वफा फरेब कैसे यह जहान तुमने देखा क्या हुआ मगर फैसला नही किया कोई गुनाह इश्क सर चढ़ा रहा हया कैसे  नही चमकी वक्त रोज समझा रहा हर तरफ  धूंआ धुंआ क्या करे अब फैसला शायर भरत राज
ख़त्म कर दो अब कहानी ,कुछ बात तो है तेरी मेरी आँखों में पानी , कुछ बात तो है जिस  तरह है  चुप्पियाँ और आँखे नम भी प्यार, धोखा  या  गुमानी , कुछ बात तो है किसान तेरा खेत,नही बिका तो नही बिका बेटी  को  कहता  तू रानी ,  कुछ बात तो है बच्चे  सहमे मुस्काये, बैठे उसके आँचल में बुढिया को कहते हो नानी ,  कुछ बात तो है राव बाज़ी के शहर में 'राज़' राज़ क्या होंगे चलकर आई खुद मस्तानी ,कुछ बात तो है शायर भरत राज़ 
हर   एक   जवां   सिकंदर  सोता जा रहा हैं आँख के आगे इंगित मंजर खोता जा रहा हैं मिल्खियत  के  वास्ते काटे  थे अपनों के गले आज वो छोटा सा टुकड़ा बंजर होता जा रहा हैं खूबसूरत सा हैं , आईना दाग चेहरे के दिखता हाथ  से  जो गिर गया , खंजर होता जा रहा हैं राज़  तूने  कोरे कागज,  कर  दिए हैं चार काले चार आखर आज तेरा मुक्क़दर होता जा रहा हैं यार तेरे कुछ मतले  रखना यूँ संभाल  कर फेसबुकिया हर प्राणी बन्दर होता जा रहा हैं शायर भरत राज़
            महकता फूल  महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है वफाये आज बिखरी है, हया जुल्मत अंधेरो में फरेबी आसमानों में जरा सी खोट लगती है मुझे मालूम था अक्षर वफायें मांग लेती है मुक्कमल लाज़मी होने में ढेरो नोट लगती है तेरे उल्फत के फेरो में मैं वापस आज आऊंगा मगर मालूम हो मुझको यहाँ भी वोट लगती है मैं नीले आसमानों से जो तारे मांग कर लाया गुनाहो को खबर जो हो यहाँ भी कोट लगती है महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है शायर भरत राज़