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Showing posts from May 8, 2016
ताकता हूँ आसमां और जमीं कहीं फिर  पूरी हो तेरी कमी किस तरह तुमको बताऊ रे बंदआँखों में भी ठहरी है नमीं जब गुजरा था वो पल याद कर और ले साया भी मेरा साथ चल आओ  जरा तुमको दिखाऊ रे प्रीत में तरसा पुराना एक पल 
मैं  चमकते  दीप की बाती बनूँ तो फिर तुम्हारे प्यार की पाती बनूँ तो तुम  जरा  नजरें उठा कर देखो ना स्वर सजाए  प्यार  के गाती  बनूँ तो मुख से अपने फिर हटाओ हाथो को चेहरा तुम्हारा देखकर जाती बनूँ तो दिल से मेरे नाम अपना ना मिटाओ भूलकर फिर  प्रीत  दुहराती बनूँ तो मैं  चमकते  दीप की बाती बनूँ तो फिर तुम्हारे प्यार की पाती बनूँ तो भरत राज़