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एक पिता की अपने बच्चों के प्रति त्यागशीलता का अनुमान कई साधकों को जानकर भी नहीं लगाया जा सकता है*
इंसान बड़ा होने पर अपने जीवन से संबंधित कई सपने देखता है और वह सपने बचपन के सपनों की तुलना में इतने छोटे होते हैं कि उनका बोझ बहुत आसानी से ढोया जा सकता है
यहां मैं बात उन सपनों की कर रहा हूं जो हमने बचपन में देखे हैं और उन्हें पूरा करने के लिए हमारे पापा ने भरसक प्रयास ही नहीं वरन् पूरा भी किया है
चाहे उन सपनों की कीमत कुछ भी रही हो, उनके जवान कंधों पर केवल हमारे शरीर का ही नहीं बल्कि हमारे उन खिलते हुए सपनों का भी बोझ होता था जो हम नादानी में देखा करते थे
आज हम बड़े हो गए हैं और हमारे छोटे छोटे सपने पूरे करने के लिए हमें दिन रात पसीना बहाना पड़ता है, एक छोटे सपने के लिए न जाने कितनी कीमत चुकानी पड़ती है कितनी रातें खराब करनी पड़ती है
मुझे आज भी याद है कई बार मैंने अनावश्यक चीजों के लिए कुछ पलों के लिए नाटकीय आंसू बहाए होंगे और वह चीज अनायास ही मेरे हाथ लग जाती, तब समझ में नहीं आता था लेकिन बड़े होने पर पता चला कि अनायास ही हाथ लग जाने वाली चीज के लिए पिता ने क्या क्या कष्ट सहे होंगे और कितने खून का पसीना किया होगा
खैर मैं हर बार कहता हूं मेरी दुनिया के एकमात्र हीरो है पापा
यहां यह पंक्तियां प्रासंगिक होगी
बिना बसंत के गुलशन .....कुछ भी नहीं
पापा है तो दुनिया है वरना कुछ भी नहीं
मैं जब भी मौका मिलता है पिता के साथ बहुत ज्यादा समय व्यतीत करता हूं और उनसे जानने की कोशिश करता हूं उनके अनुभव से प्राप्त अनुभूति का स्वाद कितना कड़वा और कितना मधुर रहा होगा
उनके पद चिन्हों पर चलने की चेष्टा करता हूं लेकिन लड़खड़ा कर गिर पड़ता हूं और अनुभव हीनता का भान होता ही होता है फिर उनके परामर्श से चार कदम चल पाता हूं
कई बार ऐसे दोराहे पर खड़ा हो जाता हूं जहां से दिखाई तो देते हैं मंजिल के नक्शे लेकिन नैतिकता और मान्यताओं के बीच फंस जाता हूं तब एक राह खुल जाती है फिर पिता की सलाह से, और तय हो जाती है मिलों दूरियां
जब भी पिता की आंखों में देखता हूं तब एक बात हमेशा कुरेदती है कि कोई इतना शांत, गहरा और सहज कैसे बना लेता है अपने आपको
उनकी यह खूबी मैं अपने अंदर उतारने की भरपूर कोशिश में लगा रहता हूं अगर एक गुण भी पा लूं तो निश्चित ही समृद्ध हो जाऊंगा
मैं चिंतनशीलता, शांति, गहराई और सहजता को अपनी सम्प्रिती बनाने की चेष्टा रखता हूं
इसे इन पंक्तियों से प्रसंग में लिया जा सकता है
हूं सहज भावों का संगम
शब्द गोखले मौन हूं मैं
सिंधु भरले नीर नैना
पूछना मत कौन हूं मैं
मैं जब भी बोलता हूं पिता की सीख बोलती है मुझ में
मोटे मोटे शब्दों में कहूं तो
कोई कर्ण भले ही कवच कुंडल दान कर सकता हो
कोई बली भले ही अपनी सारी संपदा दे सकता हो
कोई हरिश्चंद्र भले ही राज्य त्याग सकता हो
पर एक पिता की अपने बच्चों के प्रति त्यागशीलता का अनुमान इन सभी साधकों को जानकर भी नहीं लगाया जा सकता है
प्रणाम
Writer
Bharat RajGuru

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