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Showing posts from February 14, 2016
            महकता फूल  महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है वफाये आज बिखरी है, हया जुल्मत अंधेरो में फरेबी आसमानों में जरा सी खोट लगती है मुझे मालूम था अक्षर वफायें मांग लेती है मुक्कमल लाज़मी होने में ढेरो नोट लगती है तेरे उल्फत के फेरो में मैं वापस आज आऊंगा मगर मालूम हो मुझको यहाँ भी वोट लगती है मैं नीले आसमानों से जो तारे मांग कर लाया गुनाहो को खबर जो हो यहाँ भी कोट लगती है महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है शायर भरत राज़
ऐ साकी जरा मुझको बता मुस्कान की कीमत कब आएगा क्या होगी इस मेहमान की कीमत जरा मुझको सँभालने दे दुनिया की रवायत से चूका दूंगा मैं जल्दी ही  तेरे एहशान की कीमत शायर भरत्त राज़
ज़माने से कहो , मेरे तजुर्बों पर हंसा न करें आँधियाँ गर गम की  सताये तो नशा ना करें अच्छा  रहेगा  पतली गली नाप कर निकल लें यूँ प्यार मुहब्बत के चक्कर में फंसा ना करें शायर भरत राज 
O meri preet khuda ab thodi kam kar de tere bande udas baithe he unpar raham kar de   dil par na tu seetam kar na koi or tu gum bhar kabhi nhi mai uska ab muje tu sam kar kar de jindgi se juda o meri .....................!   o nhi gum ke darmiyan ab vo nhi meharbahn chod vo beeta fasana ab nhi cahiye khija kar de muskil E juda o meri........................!   taare jamin par la vo sare muje gina mai chun lunga use tu mat dena saza kar de har gum ko fana o meri..........................!   har taraf sarafa rha na milna aasan rha kar diya ishq ka nisha ab muje cahiye rza bhar de khusiyo se fza o meri................................!   O meri preet khuda ab thodi kam kar de tere bande udas baithe he unpar raham kar de     sayar bharat raj 9983917025 7665719626 bs9983917025@gmail.com
प्रीत चुपके चुपके घूमा करती राजा अक्षर बगियों में प्रेम मिलन की बाते करती राजा अक्षर सखियों में तेरे लब की एक छूअन ने दिल को ऐसा ठहराया वो रफ्ता रफ्ता तैरा करती राजा तेरी अंखियों में शायर भरत राज

kirdaar

हयात की रुकी रफ्तार पता नहीं भरत तेरा क्या किरदार पता नहीं हम तो वो आशा के दीप जगा बैठे तुम हुए आज भी खुद्दार पता नही क्या मिली अपनों से हार पता नहीं क्या टूटे है दिल के तार पता नहीं हम गैरो को संगदिल समझ बैठे हा मिली उन्हीं से मार पता नहीं जिन्दगी तेरी जो रफ्तार पता नहीं भरत तेरा क्या किरदार पता नहीं शायर भरत राज

GAJAL

महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है वफाये आज बिखरी है, हया जुल्मत अंधेरो में फरेबी आसमानों में जरा सी खोट लगती है मुझे मालूम था अक्षर वफायें मांग लेती है मुक्कमल लाज़मी होने में ढेरो नोट लगती है तेरे उल्फत के फेरो में मैं वापस आज आऊंगा मगर मालूम हो मुझको यहाँ भी वोट लगती है मैं नीले आसमानों से जो तारे मांग कर लाया गुनाहो को खबर जो हो यहाँ भी कोट लगती है महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है शायर भरत राज़