हर एक जवां सिकंदर सोता जा रहा हैं
आँख के आगे इंगित मंजर खोता जा रहा हैं
मिल्खियत के वास्ते काटे थे अपनों के गले
आज वो छोटा सा टुकड़ा बंजर होता जा रहा हैं
खूबसूरत सा हैं , आईना दाग चेहरे के दिखता
हाथ से जो गिर गया , खंजर होता जा रहा हैं
राज़ तूने कोरे कागज, कर दिए हैं चार काले
चार आखर आज तेरा मुक्क़दर होता जा रहा हैं
यार तेरे कुछ मतले रखना यूँ संभाल कर
फेसबुकिया हर प्राणी बन्दर होता जा रहा हैं
शायर भरत राज़
आँख के आगे इंगित मंजर खोता जा रहा हैं
मिल्खियत के वास्ते काटे थे अपनों के गले
आज वो छोटा सा टुकड़ा बंजर होता जा रहा हैं
खूबसूरत सा हैं , आईना दाग चेहरे के दिखता
हाथ से जो गिर गया , खंजर होता जा रहा हैं
राज़ तूने कोरे कागज, कर दिए हैं चार काले
चार आखर आज तेरा मुक्क़दर होता जा रहा हैं
यार तेरे कुछ मतले रखना यूँ संभाल कर
फेसबुकिया हर प्राणी बन्दर होता जा रहा हैं
शायर भरत राज़
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