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          महकता फूल 


महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है
बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है
वफाये आज बिखरी है, हया जुल्मत अंधेरो में
फरेबी आसमानों में जरा सी खोट लगती है
मुझे मालूम था अक्षर वफायें मांग लेती है
मुक्कमल लाज़मी होने में ढेरो नोट लगती है
तेरे उल्फत के फेरो में मैं वापस आज आऊंगा
मगर मालूम हो मुझको यहाँ भी वोट लगती है
मैं नीले आसमानों से जो तारे मांग कर लाया
गुनाहो को खबर जो हो यहाँ भी कोट लगती है
महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है
बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है
शायर भरत राज़

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kirdaar

हयात की रुकी रफ्तार पता नहीं भरत तेरा क्या किरदार पता नहीं हम तो वो आशा के दीप जगा बैठे तुम हुए आज भी खुद्दार पता नही क्या मिली अपनों से हार पता नहीं क्या टूटे है दिल के तार पता नहीं हम गैरो को संगदिल समझ बैठे हा मिली उन्हीं से मार पता नहीं जिन्दगी तेरी जो रफ्तार पता नहीं भरत तेरा क्या किरदार पता नहीं शायर भरत राज