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मैं शब्दों को कई बार
तोडूंगा- मरोडूंगा और
निकालूंगा उनमें से कई अर्थ
जिसे हर पढ़ने वाला
अपने मुताबिक़ ले जाएं
और काम ले लें अपनी जीवन
शैली बेहतर बनाने के लिए
मैं इनको काले रंग से भिगो दूंगा
जिससे नहीं चढ़ पाए कोई
एक तरफा रंग,
ये बना ले सभी रंगो को अपने जैसा
काला या कस्तूरी जैसा काला
मैं इन्हें गन्ने की तरह
पीलता रहूंगा और निकाल लूंगा
एक - एक बूंद रस
फिर तुम्हारी जुबां पर
फैलाऊंगा मिठास ही मिठास
मिठास
और केवल
मिठास
भरत राजगुरु

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kirdaar

हयात की रुकी रफ्तार पता नहीं भरत तेरा क्या किरदार पता नहीं हम तो वो आशा के दीप जगा बैठे तुम हुए आज भी खुद्दार पता नही क्या मिली अपनों से हार पता नहीं क्या टूटे है दिल के तार पता नहीं हम गैरो को संगदिल समझ बैठे हा मिली उन्हीं से मार पता नहीं जिन्दगी तेरी जो रफ्तार पता नहीं भरत तेरा क्या किरदार पता नहीं शायर भरत राज