महकता फूल महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है वफाये आज बिखरी है, हया जुल्मत अंधेरो में फरेबी आसमानों में जरा सी खोट लगती है मुझे मालूम था अक्षर वफायें मांग लेती है मुक्कमल लाज़मी होने में ढेरो नोट लगती है तेरे उल्फत के फेरो में मैं वापस आज आऊंगा मगर मालूम हो मुझको यहाँ भी वोट लगती है मैं नीले आसमानों से जो तारे मांग कर लाया गुनाहो को खबर जो हो यहाँ भी कोट लगती है महोब्बत से ,इनायत से ,वफ़ा से चोट लगती है बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है शायर भरत राज़
It is my good fortune that I was born to Mr. Pukhraj Singh Rajpurohit and Nain Kanwar Rajpurohit. Father gave me discipline and soulfulness as heritage, and mother taught to live with truth and faith.