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प्रीत
चुपके चुपके घूमा करती राजा अक्षर बगियों में
प्रेम मिलन की बाते करती राजा अक्षर सखियों में
तेरे लब की एक छूअन ने दिल को ऐसा ठहराया
वो रफ्ता रफ्ता तैरा करती राजा तेरी अंखियों में
शायर भरत राज

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kirdaar

हयात की रुकी रफ्तार पता नहीं भरत तेरा क्या किरदार पता नहीं हम तो वो आशा के दीप जगा बैठे तुम हुए आज भी खुद्दार पता नही क्या मिली अपनों से हार पता नहीं क्या टूटे है दिल के तार पता नहीं हम गैरो को संगदिल समझ बैठे हा मिली उन्हीं से मार पता नहीं जिन्दगी तेरी जो रफ्तार पता नहीं भरत तेरा क्या किरदार पता नहीं शायर भरत राज