मैं किसी एहसान के नीचे दबा हूँ एहसास के नीचे दबा हूँ तुम अधूरा छोड़ भी देते मुझे पर मैं तेरी हर सांस के नीचे दबा हूँ हूँ अधूरा आज भी, छलका हूँ सिसकियों से कभी आंखों से नदियों को बुलाता हूँ हथेलियों पर रिस गई है आंख बंद होते ही फिर किसी कागज के पन्नों पर गिर गई है बूँद तेरा नाम मिटाने शब्द में जो शख़्स उलझ कर रह गया वो खास है मैं किसी एक खास के नीचे दबा हूँ एक पुरानी आस के नीचे दबा हूँ तुम अधूरा छोड़ भी देते मुझे पर मैं तेरी हर सांस के नीचे दबा हूँ मौन हूँ मैं आंख में सागर लिए रिक्त ह्रदय में गागर लिए हाथ में एक कलम का बोझा लिए ओर कलम में आंख का पानी लिए सुन फल और उपवन के मालिक मैं प्रीत फलों की फांक के नीचे दबा हूँ वनों की घास के नीचे दबा हूँ तुम अधूरा छोड़ भी देते मुझे पर मैं तेरी हर सांस के नीचे दबा हूँ भरत राज
It is my good fortune that I was born to Mr. Pukhraj Singh Rajpurohit and Nain Kanwar Rajpurohit. Father gave me discipline and soulfulness as heritage, and mother taught to live with truth and faith.